चुनाव आयोग द्वारा मायावती को दिया गया जोरदार झटका. तानाशाही और अलोकतांत्रिक फैसलों पर मांगा जवाब. 

 


              
मायावती को  भारतीय चुनाव आयोग द्वारा जोरदार झटका दिया गया है जिसके चलते न केवल उसके तमाम मनमाने, तानाशाहीपूर्ण एवं आलोकतांत्रिक फैसलों पर जवाब मांगा गया है बल्कि उसके तानाशाहीपूर्ण तौर-तरीकों पर लगाम भी कसी है।


महाराष्ट्र के एक नामी वकील श्री हर्षवर्धन गोडघाटे (जो कि विगत में बीएसपी के पदाधिकारी भी रह चुके हैं) द्वारा आरटीआई के तहत मांगी गयी जानकारी तथा अन्य पत्र-व्यवहार के जवाब में आयोग द्वारा गत 20-08-2019 को बीएसपी के संविधान में मनमाने ढंग से किए गए बदलावों पर आयोग ने बेहद कडा रुख अख़्तियार करते हुये मायावती को नोटिस देकर जवाब मांगा है। जानने योग्य है कि कुछ समय पहले मायावती द्वारा बीएसपी के संविधान में “चुपके से” फेर बदल करके तथा बीएसपी की (तथाकथित) राष्ट्रीय कार्यकारिणी में खुद उसके द्वारा ही नियुक्त अपने “पिटठुओं” से उसका 'सर्वसम्मत अनुमोदन' करवा कर पार्टी में 'राष्ट्रीय संरक्षक' का पद सृजित करवा लिया था ताकि अपने बुढ़ापे में अपने भाई भतीजों को (या मिश्रा एंड कंपनी) को राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद सौंपने का रास्ता साफ हो जाये। इसे आयोग ने गैरकानूनी माना है तथा इसे तत्काल दुरुस्त करने के निर्देश दिये हैं।


केवल यही नहीं, पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के भी एक से बढ़ा कर दो पद सृजित कर दिये गए (1) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (कार्यकारी) एवं (2) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (राजनैतिक)। जब एक उपाध्यक्ष पद पर इसका भाई आनंद बैठा ही दिया गया है तो ये साफ है कि भविष्य में दूसरे पद पर पंडित मिश्रा (या उसके किसी करीबी) को उस महत्वपूर्ण पद पर फिट करने का प्लान हो। कुल मिलाकर ये साफ नज़र आता है कि बीएसपी को (अंततः) मायावती की पारिवारिक संपत्ति बनाने अथवा मिश्रा के हाथों में सौंपने के लिए ये सब “गेम प्लान” बनाया गया है। 


लेकिन चुनाव आयोग ने श्री हर्षवर्धन गोडघाटे के इन सवालों के संदर्भ में अपनी घोर आपत्ति जाहिर करते हुये मायावती के द्वारा किए गए इन संशोधनों को आलोकतांत्रिक माना है और उससे जवाब तलब किया है।


(2) आयोग ने केवल एक व्यक्ति (राष्ट्रीय अध्यक्ष अर्थात मायावती) के हाथों में सारी शक्तियों के केन्द्रीकरण को गलत माना है और इसे लोकतान्त्रिक तरीके अपनाने के सख्त एवं स्पष्ट निर्देश दिये हैं।   


(3) एक और महत्वपूर्ण बात- चुनाव आयोग ने अपने 20 अगस्त 2019 के पत्र में मायावती द्वारा बिना कानून सम्मत प्रक्रिया के  पार्टी पदाधिकारियों आदि के निलंबन को भी गलत करार दिया है तथा इस संबंध में पार्टी (मायावती) को इस संबंध में समुचित प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश दिया है।


जैसा कि पिछले 15-16 सालों से ये देखने में आता रहा है कि मायावती द्वारा बिना किसी कारण बताओ नोटिस, अथवा विस्तृत आरोपों के बारे में बताए मनमाने ढंग से पार्टी पदाधिकारियों को मनमाने ढंग से पार्टी से निष्कासित/निलंबित करने का “धंधा” चलता आ रहा था, जिसे अब तक किसी निष्कासित व्यक्ति ने चुनौती नहीं दी थी। लेकिन अब इस आदेश के बाद मायावती के लिए ये ज़रूरी होगा कि वो छोटे-बड़े किसी भी पार्टी पदाधिकारी को निष्कासित करते समय नियमों के मुताबिक कार्रवाई करे (जैसे कारण बताओ नोटिस, जवाब देने के लिए पर्याप्त समय, किस आरोप के तहत निष्कासन किया गया इसकी जानकारी आदि आदि)। जाहिर है आयोग के इस फैसले से मायावती और उसके द्वारा बीएसपी के भीतर पैदा किए गए बेलगाम “गुंडा-तंत्र” पर काफी हद तक लगाम लगेगी। 


जिस हिम्मत, लगन और धैर्य के साथ श्री हर्षवर्धन गोडघाटे जी ने आरटीआई के माध्यम से चुनाव आयोग से प्रश्न पूछ कर तथा माया-मिश्रा एंड कंपनी द्वारा गुप्त तरीकों से पार्टी हथियाने तथा इसे कोई घरेलू कंपनी जैसा बना कर चलाने के लिए किए जा रहे षडयंत्रों को देश के बहुजन समाज के सामने नंगा किया है वह वाकई काबिले तारीफ है। उनको इस प्रयास के लिए हार्दिक साधुवाद।